24 फरवरी 2025 – धमतरी जिले में फसल चक्र परिवर्तन के सकारात्मक प्रभाव अब स्पष्ट रूप से नजर आने लगे हैं। गर्मी के धान के स्थान पर दलहनी, तिलहनी और नगदी फसलों की खेती अपनाने से किसानों को दोहरा लाभ मिल रहा है। इससे खेती की लागत कम हो रही है और सिंचाई के लिए पानी की खपत भी घट रही है। जिले में चना उत्पादक किसानों ने चनाबूट बेचकर प्रति एकड़ 36,000 से 38,000 रुपये तक का शुद्ध मुनाफा कमाया है।
मगरलोड विकासखंड के कुंडेल गांव के किसान रामनाथ ने मात्र दो से ढाई महीने में 84,000 रुपये का चनाबूट बेचा, जिससे सभी खर्चों को घटाकर प्रति एकड़ 36,000 से 38,000 रुपये का शुद्ध मुनाफा अर्जित किया। जिले में इस वर्ष लगभग 15,500 हेक्टेयर में चने की फसल लगाई गई है। इनमें से लगभग 4,000-5,000 हेक्टेयर की फसल को किसानों ने 40 रुपये प्रति किलो की दर से चनाबूट के रूप में बेचा और अच्छा लाभ प्राप्त किया।
धमतरी विकासखंड के खरतुली गांव के किसान चैतुराम ने तीन एकड़ में चने की फसल लगाई और चनाबूट को 38 रुपये प्रति किलो की दर से बेचकर 1,16,000 रुपये से अधिक का लाभ कमाया।
कृषि विशेषज्ञों का नजरिया
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, गर्मी के धान की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 1.2 करोड़ लीटर पानी की आवश्यकता होती है, जबकि चने की फसल के लिए मात्र 40 लाख लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। यानी प्रति हेक्टेयर 80 लाख लीटर पानी की बचत संभव है।
इसके अतिरिक्त:
सिंचाई, खाद, कीटनाशक, कटाई आदि पर 40-45 हजार रुपये तक की बचत होती है।
राइजोबियम बैक्टीरिया मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिर कर उर्वरा शक्ति बढ़ाता है।
कम समय में फसल पकने से खेत जल्दी खाली हो जाता है, जिससे तीसरी फसल लेने का अवसर मिलता है।
ग्लोबल वार्मिंग के लिए हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कम होता है।
रामनाथ का कहना है कि वह अब तीसरी फसल के रूप में उड़द और मूंग की खेती करने की योजना बना रहे हैं, जिससे उनकी आमदनी और बढ़ेगी। चना न केवल आर्थिक रूप से लाभकारी है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता है, क्योंकि इसमें 9% प्रोटीन, 10% फाइबर और प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, मैग्नीशियम तथा फॉस्फोरस पाया जाता है।
इस तरह, फसल चक्र परिवर्तन से किसानों को लाभ मिल रहा है, जल संकट कम हो रहा है और मृदा की उर्वरता बनी रह रही है।
