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July 23, 2025 12:09 am

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चौदह नामों से सरस्वती पत्रिका के लिए रचनाएं लिखते थे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी

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हिंदी के युग प्रवर्तक आचार्य पं महावीर प्रसाद द्विवेदी ने साहित्य संसार को ही नहीं तराश, बल्कि हिंदी की को समृद्ध बनाने के लिए खुद को 14 रूपों में खड़ा भी किया था। जब सरस्वती के किसी अंक के लिए लेखकों की पर्याप्त रचनाएं उपलब्ध नहीं होती थीं, तब वह तब अपने ही दूसरे नामों से कहानियां, निबंध, आलोचनाएं और समीक्षाएं लिखकर प्रकाशित कर देते थे।

हिंदी भाषा और साहित्य को समृद्ध बनाने वाले आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की बृहस्पतिवार को पुण्यतिथि मनाई जाएगी। प्रयागराज से उनके गहरे जुड़ाव की निशानी के तौर पर इंडियन प्रेस अभी भी गवाह के तौर पर मौजूद है। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि सरस्वती की साहित्यिक धारा एक बार फिर उसी इंडिचयन प्रेस से प्रवाहित हो रही है। सरस्वती के संपादक के रूप में उन्होंने आधुनिक हिंदी जन-जन में ग्राह्यता और स्वीकार्यता पैदा की।
द्विवेदी युग के प्रवर्तक आचार्य महावीर हिंदी गद्य के उन निर्माताओं में से हैं, जिनकी प्रेरणा और प्रयत्नों से हिंदी भाषा समृद्ध ही नहीं हुई, बल्कि कई कवि-कथाकार विश्व पटल पर स्थापित भी हुए। 1903 से दिसंबर 1920 तक सरस्वती के संपादक रहे आचार्य आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की साहित्य साधना पर बुधवार को मौजूदा संपादक अनुपम परिहार ने विस्तार से रोशनी डाली।

अनुपम परिहार बताते हैं कि जब सरस्वती के किसी अंक के लिए सामग्री का अभाव होता था, तब आचार्य अपने ही दूसरे काल्पनिक नामों से रचनाएं लिखकर प्रकाशित करते थे। अब तक ऐसे उनके 14 नामों का उल्लेख मिल चुका है। परिहार के मुताबिक जुलाई 1908 के अंक में कवियों में उर्मिला विषयक उदासीनता शीर्षक के आलेख भुजंग भूषण भट्टाचार्य के नाम से प्रकाशित हुआ था।भुजंगभूषण कोई और नहीं, आचार्य महावीर प्रसाद ही थे। इसके अलावा वह कवि किंकर, सुकवि किंकर, कुंज, कमल किशोर त्रिपाठी, श्रीकंठ पाठक एमए, चक्रपाणि शर्मा, निपुण नारायण शर्मा, पुराणपाठी, परमेश्वर शर्मा, द्विरेफ, कल्लू अल्हइत, विपन्न और एक ग्रामीण नाम से भी उनके आलेख सरस्वती में प्रकाशित हुए थे।

Anash Raza
Author: Anash Raza

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