शिक्षक क़े बिना क्या यें दुनिया एक सभ्य समाज का निर्माण कर पाएगी, यें एक विचारणीय बात है।
समाज में शिक्षक की कमी भी एक मुद्दा है और शिक्षक की कमी तो हर राज्य में है लेकिन शिक्षक भर्ती करने में सरकार बजट का रोना रोती है लेकिन ज़ब खुद क़े पेंशन और सरकारी कार्य में विभिन्न अनियमितता की बात यें नेता और उच्च स्तरीय अधिकारी नहीं करते क्यूंकि उस बंदरबाँट में उनके हाथ में मलाई आती है।
आखिर शिक्षक ज़ो एकता का पाठ पढ़ाता है वो अपने संगठन क़े सुप्तावस्था में होने और कई टुकड़ो में बंटे होने से अपनी आवाज़ सरकार या उच्च अधिकारियों तक पहुंचाने में असमर्थ हो गया है।

क्या शिक्षा विभाग अपने कर्मचारियों क़े लिए सोचता भी है? या बिना सोचे समझें दूसरे विभाग क़े कार्य में जोत देता है ….
एक समय था ज़ब शिक्षक केवल अध्यापन क़े कार्य करता था और उसे किसी भी तरह क़े अन्यत्र काम में न क़े बराबर लगाया जाता था। आज क़े दौर में शिक्षा विभाग में कार्यरत शिक्षक क़े बारे में उसके विभाग ही नहीं सोचता, शिक्षा विभाग का बाबू छोटे छोटे काम क़े लिए भी कर्मचारियों को परेशान करता है। विभाग में ऊपर बैठे अधिकारी विभिन्न तरह क़े ट्रेनिंग यदा कदा करवाते रहते है वो भी कई तरह क़े NGO क़े माध्यम से उनके विचारों को अमली जामा पहनाया जाता है, जबकि शिक्षक की नियुक्ति करते वक़्त यें देखा जाता है कि वो प्रशिक्षित है या नहीं, उसके बाद भी हर दूसरे शनिवार किसी न किसी चीज कि ट्रेनिंग चलती रहती है। हद तो उस वक़्त हुई ज़ब स्कूल क़े कर्मचारियों को जाति निवास बनवाने क़े लिए भी आदेशित कर दिया गया उस कार्य में भी शिक्षक काफी परेशान हुए। पंचायत से कई तरह क़े डाक्यूमेंट्स क़े लिए कई बार दौड़ते रहे जबकि बच्चों क़े माता पिता निंश्चित रहते थे, उसके बाद स्वास्थ्य विभाग द्वारा बच्चों का आयुष्मान कार्ड बनाने क़े लिए भी बोल दिया गया। उसके बाद आर्थिक सर्वे में 2-3 महीना शिक्षक सुबह शाम दौड़ भाग करके अपना कर्तव्य निभा रहा था यें जानते हुए भी कि इसका भुगतान गरीब घर क़े बच्चें उस वक़्त क़े पढ़ाई से वंचित होकर करेंगे। क्या शिक्षा विभाग क़े उच्च अधिकारी को इन सब बातों से फ़र्क पड़ता भी है, बिल्कुल नहीं क्यूंकि इनके बच्चें तो प्राइवेट स्कूलों में भारी फीस देकर पढ़वाते है इसीलिए इन्हे गरीब घर क़े बच्चों की परवाह क्यों होगी? वैसे ही शिक्षकों की भारी कमी है, यें सारी बात अधिकारी जानते है।

शौचालय सत्यापन और समर कैंप ने पारा बढ़ाया शिक्षकों का…
शिक्षक और समाज एक दूसरे का आइना होते है और वो समाज में एक प्रतिष्ठित स्थान रखता है और समाज क़े हर कार्य में शामिल होता है लेकिन क्या वो दूसरे विभाग क़े हाथों की कठपुतली बन गया है यें सवाल आजकल हर शिक्षक क़े जुबान पें आ ही जाता है।
समर कैम्प का आदेश तो अधिकारी अनिवार्य नहीं है कह कर निकालते है लेकिन गर्मी की छुट्टियों में ज़ब वह अपने परिवार क़े साथ बाहर गया हुवा है तो उस वक़्त समर कैंप का आयोजन करना वो भी कई जिलों में लगभग अनिवार्य ड्यूटी की तरह करने का दबाव विभाग अपने मातहत कर्मचारियों क़े जरिये करवाना कहाँ तक उचित है ऊपर से दुर्ग क़े धमधा में शौचालय क़े सत्यापन करवाना किस हद तक सही ठहराया जा सकता है, क्या पंचायत विभाग क़े पास कर्मचारियों की कमी है या शिक्षा विभाग में ज़्यादा कर्मचारी देख कर बाकि विभाग अपने कार्य शिक्षक से करवाना चाहता है। शिक्षक इन सब कार्यों से दिनों दिन वो अपनी प्रतिष्ठा खोते जा रहा है।
शिक्षा विभाग क़े स्कूलों में कर्मचारियों की संख्या की कमी…..
प्राथमिक शाला में हर कक्षा क़े लिए शिक्षक होना चाहिए ताकि वो बच्चों का ज़्यादा अच्छा से ध्यान दे लेकिन होता ठीक इसका उल्टा है एक एक शिक्षक 2-3 कक्षा में अध्यापन का कार्य कराता है और हर विषय को एक साथ बस वो मैनेज करके ही पढ़ा पाता है, ऊपर से अन्यत्र विभाग क़े कार्य यदा कदा करता ही है, इसमें वह शिक्षक वह गुणवत्ता नहीं दे सकता और इसी का फायदा NGO समूह को मिलता है और कई ट्रेनिंग का आयोजन करने मिल जाता है। यही हाल उच्चतम कक्षा में भी है राज्य क़े हर ब्लॉक क़े शालाओं में आपको शिक्षकों क़े कमी से जूझते हुए मिलेंगे अब बेमेतरा क़े बेरला ब्लॉक क़े गोंडगिरी गाँव क़े शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ज़ो एक बेहतरीन शाला है, वहाँ क़े शिक्षक और व्याख्याता आपस में संयोजन करके बहुत ही बेहतरीन अध्यापन कार्य करा रहे है जबकि वहां कई विषय क़े व्याख्याता का पद होते हुए भी वो पद खाली है और अचरज की बात तो यें है कि विगत कई वर्षों से खाली है और विभाग को पता होते हुए भी वहां व्याख्याता की पोस्टिंग नहीं दी जाती है, जबकि यहाँ की पढ़ाई कई प्राइवेट स्कूलों से बेहतर है यें तो वहां क़े शिक्षकों का आपसी सामंजस्य है ज़ो विभाग क़े नकारापन को किनारे करते हुए अध्यापन कार्य कर रहे है, ये तो मात्र एक उदाहरण मात्र है राज्य में ऐसे कई शाला आपको शिक्षकों की कमी से जूझते हुए मिल जायेंगे।

