हाईकोर्ट ने कांस्टेबल की अनिवार्य सेवानिवृत्ति को किया खारिज
बिलासपुर
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एक पुलिस कांस्टेबल की अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश को खारिज कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि कांस्टेबल पर लगाया गया दंड अनुपातहीन था और अनुशासनात्मक अधिकारियों को बड़े दंड से पहले पुलिस विनियमन के तहत कम दंड पर विचार करना चाहिए। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बर्खास्तगी अंतिम उपाय होनी चाहिए और इसे तभी लागू किया जाना चाहिए जब अन्य सभी उपाय विफल हो जाएं।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता रामसागर सिन्हा बिलासपुर के सकरी में पुलिस कांस्टेबल के रूप में कार्यरत थे। 31 अगस्त 2017 को उन्होंने महत्वपूर्ण शिविर सुरक्षा ड्यूटी करने से इंकार कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। इस फैसले के खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की थी, जिसे सिंगल बेंच ने खारिज कर दिया था। बाद में, इस फैसले को डिवीजन बेंच (डीबी) में चुनौती दी गई।
याचिकाकर्ता के तर्क
याचिकाकर्ता ने अदालत में तर्क दिया कि वह 56 वर्ष की आयु में खराब स्वास्थ्य के बावजूद कट्टर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में तैनात थे, जिसके कारण वे 24 जुलाई 2017 को ड्यूटी पर रिपोर्ट नहीं कर पाए। उन्होंने यह भी दावा किया कि विभागीय जांच समिति ने उनकी स्वास्थ्य स्थिति की सही ढंग से जांच नहीं की। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि कांस्टेबल के निम्नतम पद पर कार्यरत होने के कारण, उनके लिए उचित सजा केवल चेतावनी हो सकती थी, न कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति।
शासन की दलील
राज्य सरकार की ओर से मामले में जवाब प्रस्तुत करते हुए एडवोकेट संघर्ष पांडे ने तर्क दिया कि विभागीय जांच के दौरान याचिकाकर्ता को पर्याप्त अवसर दिया गया था। उन्होंने कहा कि सिन्हा ने जानबूझकर अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों का उल्लंघन किया, जबकि एक सशस्त्र बल के सदस्य के रूप में उनसे उच्च अनुशासन की अपेक्षा की जाती थी। शासन का कहना था कि कांस्टेबल को दी गई सजा कदाचार के अनुपात में थी और सिंगल बेंच का फैसला सही था।
हाईकोर्ट का फैसला
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने आरोप-पत्र की समीक्षा करने के बाद पाया कि याचिकाकर्ता पर आदेशों की अवहेलना करने का आरोप लगाया गया था, लेकिन उन्होंने अपनी शारीरिक अस्वस्थता और अक्षमता को इसका कारण बताया था। न्यायालय ने कहा कि किसी कर्मचारी की बर्खास्तगी अंतिम उपाय होनी चाहिए और इसे तभी लागू किया जाना चाहिए जब अन्य सभी उपाय असफल हो जाएं।
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि न्यायालय अनुशासन बनाए रखने के साथ-साथ कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करने में भी संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाता है।
