वैश्वीकरण के दौर में छात्रों को भारतीय ज्ञान परंपरा से रूबरू कराया जा रहा है। यही नहीं श्रीमद्भगवतगीता की प्रासंगिकता को भी बताया जा रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के रामानुजन कॉलेज में भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र की शुरुआत की गई है। इसका उद्देश्य प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा को विश्व में केंद्र-बिंदु बनाना है। इसके तहत प्राचीन अध्ययन, अध्यापन व अनुसंधान को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें छात्रों को जीवन में गीता के महत्व के बारे में समझने में मदद मिल रही है। वहीं, केंद्र अनुसंधान और अन्वेषण से प्राप्त महत्वपूर्ण ज्ञान को भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित करने का कार्य कर रहा है।
श्रीमद्भगवत-गीता प्रबोधन एवं प्रासंगिकता पर 20 दिवसीय प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम शुरु किया गया है। छात्रों व शिक्षकों को प्राचीन भारतीय ज्ञान की जानकारी दी जा रही है। रामानुजन कालेज के शासी निकाय के अध्यक्ष डॉ. जिगर इनामदार ने बताया कि ‘भारतम्:’ भारतीय ज्ञान परंपरा अध्ययन, अनुसंधान और अध्ययन केंद्र के माध्यम से प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा की खोज से पूरी दुनिया लाभान्वित होगी। इसमें प्राचीन ग्रंथों और साहित्य के व्यवस्थित अध्ययन के माध्यम से भारतीय मूल्य प्रणाली से संबंधित ज्ञान का प्रसार और संरक्षण करना है। साथ ही, प्राचीन ज्ञान गंगा के मंथन से प्राप्त धरोहर, समसामयिक आवश्यकताओं व दीर्घकालीन उद्देश्यों की पूर्ति की ओर अग्रसर है।
आध्यात्मिक समझ को कर रहे समृद्ध
श्रीमद्भगवतगीता जीवन के लिए एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक है, जो कर्तव्य, धर्म और आत्म-बोध के मार्ग पर महत्वपूर्ण समयातित सीख को अपने में समाहित किए हुए है। इससे जुड़े प्रतिभागी न केवल अपनी आध्यात्मिक समझ को समृद्ध कर रहे हैं। वहीं, सांस्कृतिक और दार्शनिक विरासत से भी परिचित हो रहे हैं। डीयू में संस्कृत विषय के शोध के छात्र अंकित सिंह ने कहा कि प्राचीन शिक्षा प्रणाली ने व्यक्ति के सर्वांगीण विकास पर ध्यान केंद्रित किया है। इसके साथ ही विनम्रता, सच्चाई, अनुशासन, आत्मनिर्भरता और सम्मान जैसे मूल्यों पर बल दिया है। भारत में शिक्षा का स्वरूप व्यावहारिकता को प्राप्त करने योग्य और जीवन में सहायक है।
600 से अधिक शिक्षक व छात्र पाठ्यक्रम में हुए शामिल
इस पाठ्यक्रम में 600 से अधिक शिक्षक व छात्र शामिल हुए हैं। प्रथम चरण में 500 प्रतिभागी ऑनलाइन व 100 से अधिक प्रतिभागी ऑफलाइन माध्यम से जुड़े हैं। इसमें न केवल ज्ञान का संरक्षण और प्रसार को मदद मिल रही है, बल्कि शिक्षकों और छात्रों के साथ सक्रिय रूप से परस्पर विमर्श का एक मंच भी प्रदान किया है। पाठ्यक्रम में गीता के आठ अध्यायों का विस्तृत रूप से पढ़ाया जाएगा, जिसमें से अर्जुन विषादयोग व सांख्ययोग के दो अध्याय पढ़ाए जा चुके हैं। छात्र राहुल ने कहा कि बदलते सामाजिक परिवेश और भारतीय मूल्यों के बीच हमारी शिक्षा व्यवस्था को समावेशी बनाना अत्यावश्यक है। यह समावेशी व्यवस्था भारतीय प्राचीन ज्ञान परंपरा को लिए बिना नहीं चल सकती है, क्योंकि एक तरफ तो हम आधुनिकता के दौर में सरपट भागे जा रहे हैं, वहीं हमारी संस्कृति में निहित ज्ञान विज्ञान परंपरा को भूलते जा रहे हैं। पाठ्यक्रम में डॉ. निर्मालानंदनाथ महास्वामी, संस्कृति ऋषिहुड विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान केंद्र के निदेशक प्रो. डॉ. संपदानंद मिश्र समेत कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के लोग अध्यापन कार्य कर रहे हैं।
