रायपुर/बस्तर।बस्तर संभाग में वर्षों से नक्सलवाद की छाया में पनपती तेंदूपत्ता ठेकेदारी व्यवस्था को सरकार ने इस बार जड़ से बदलने की पहल की है। वन विभाग द्वारा तेंदूपत्ता खरीदी प्रक्रिया का पुनः अधिग्रहण कर लिया गया है, जिससे न केवल संग्राहकों के शोषण पर लगाम लगेगी बल्कि नक्सलियों को मिलने वाली करोड़ों की लेवी पर भी रोक लगना तय माना जा रहा है।
सूत्रों के अनुसार, 21 वर्ष पूर्व तक तेंदूपत्ता की खरीदी सीधे वन विभाग द्वारा की जाती थी। लेकिन 2004 में नीति बदलते हुए यह कार्य समितियों के माध्यम से नीलामी और ठेकेदारों को सौंप दिया गया। इसी व्यवस्था ने ठेकेदारों को एक ऐसा नियंत्रण सौंपा, जिसमें प्रभाव, मनमानी और मिलीभगत के चलते संग्राहकों को वास्तविक लाभ से वंचित होना पड़ा।
ठेकेदारी के खेल में लेवी का गहरा गठजोड़
पुलिस-नक्सली मुठभेड़ों में मिले दस्तावेजों से यह स्पष्ट हुआ है कि नक्सली ठेकेदारों से भारी-भरकम लेवी वसूलते थे। जो ठेकेदार लेवी नहीं देता था, उनकी समिति में संग्रहित तेंदूपत्ता को आग के हवाले कर दिया जाता था। आरंभिक वर्षों में कई ऐसी घटनाएं सामने आईं, लेकिन समय के साथ प्रशासनिक संरक्षण और मैनेजमेंट ऐसा हुआ कि सब कुछ ‘शांत’ दिखने लगा, पर अंदर ही अंदर ठेकेदारों और नक्सलियों के बीच सहमति का खेल जारी रहा।
संग्राहकों के अधिकारों का हनन
तेंदूपत्ता तोड़ाई के बाद संग्राहक जब गड्डी बना कर उसे खुले मैदान में सुखाते थे, उस वक्त ठेकेदारों के मुंशी अपने मन मुताबिक खेल रचते थे। गड्डियों की हेराफेरी, गिनती में गड़बड़ी और शोषण के ऐसे तरीके अपनाए जाते थे, जिन पर समिति के अधिकारी भी बेखबर या मौन रहते थे।
नई नीति से टूटेगा नक्सली नेटवर्क
अब वन विभाग ने तोड़ाई, संग्रहण और खरीदी प्रक्रिया पर सीधा नियंत्रण ले लिया है। इसका सीधा असर नक्सलियों की आर्थिक कमर पर पड़ेगा। लेवी नहीं मिलने से उनकी फंडिंग रुक जाएगी, जो आने वाले समय में नक्सल विरोधी अभियानों को और मजबूती देगा।
सरकार की यह नीति परिवर्तन न केवल वन उपज संग्राहकों को संरक्षण देगा, बल्कि बस्तर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास की नई राह भी खोलेगा।







