Short-sighted Education System vs. the Tragedy of Teachers:
Thousands of teachers in Chhattisgarh are weeping tears of blood—
If teachers themselves are unstable, how can the quality of education remain stable?
Before teaching children, a 40 km journey—some to be sent 120 km away.
छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था इन दिनों अपने ही बनाए नियमों और निर्णयों के बोझ तले कराह रही है। राज्यभर में चल रहे युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया ने शिक्षकों की ज़िंदगी को अनिश्चितता और तनाव से भर दिया है। यह कोई साधारण प्रशासनिक कवायद नहीं, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था है जो शिक्षक जैसे जिम्मेदार वर्ग को मानसिक, पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर तोड़ रही है। नीचे विस्तार से समझते हैं कि शिक्षकों की पीड़ा किस रूप में सामने आ रही है और इसका समाज व शिक्षा पर क्या असर हो सकता है।
पहले 40 किमी दूर जाते थे, अब भेजा जा रहा 120 किमी दूर
बहुत से शिक्षक जो पहले अपने घर से 30 से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित विद्यालयों में पढ़ाने जाते थे, अब युक्तियुक्तकरण के बाद उन्हें ऐसे स्कूलों में भेज दिया गया है जो 100 से 120 किलोमीटर दूर हैं। इससे न केवल आने-जाने में समय और धन की बर्बादी हो रही है, बल्कि पारिवारिक जीवन पूरी तरह प्रभावित हो गया है। कुछ स्थानों पर तो बसें या यातायात की नियमित सुविधा भी नहीं है, जिससे महिला शिक्षकों और वरिष्ठजनों की स्थिति और भी चिंताजनक हो गई है।
हजारों शिक्षक हो गए जिले से बाहर, टूट गया पारिवारिक संतुलन
शिक्षकों को अब न केवल दूरस्थ स्थानों पर भेजा गया है, बल्कि कई को अपने ही जिले से बाहर भेज दिया गया है। इसका सीधा असर उनके पारिवारिक जीवन पर पड़ा है। छोटे बच्चों की देखभाल, बुजुर्गों की सेवा, स्वास्थ्य सुविधाएं और बच्चों की पढ़ाई जैसे मुद्दे गंभीर रूप से प्रभावित हो रहे हैं। कुछ शिक्षक तो खुद बीमार हैं, लेकिन इलाज और परिवार दोनों से दूर हो गए हैं।
कोई माँ की सेवा कर रहा था, कोई अपने जीवन की पीड़ा झेल रहा — फिर भी झेलने को मजबूर
बहुत से शिक्षक ऐसे हैं जिनके परिवार में गंभीर समस्याएं हैं — जैसे माता-पिता बीमार हैं, घर में विकलांग सदस्य हैं या खुद शिक्षक किसी बीमारी से ग्रसित हैं। इसके बावजूद प्रशासन की कठोर नीति और तानाशाही रवैये के कारण उन्हें मजबूर होकर नए पदस्थापन को स्वीकार करना पड़ रहा है। भावनात्मक और मानसिक तनाव अब उनके कार्यक्षमता को भी प्रभावित कर रहा है।
दो-तीन साल पहले ट्रांसफर लेकर आए शिक्षक भी कर दिए गए अतिशेष
यह आश्चर्यजनक है कि कई ऐसे शिक्षक जिन्हें हाल ही में स्थानांतरित कर किसी विद्यालय में पदस्थ किया गया था, अब उन्हें उसी विद्यालय से ‘अतिशेष’ घोषित कर दिया गया है। इससे शिक्षकों में यह भय व्याप्त हो गया है कि अब कोई भी पदस्थापन स्थायी नहीं रहा, जिससे उनका मनोबल टूटता जा रहा है।
आर्थिक सहयोग लेकर जिनकी नियुक्ति हुई, उन्हें वहीं पोस्ट किया गया जहाँ पहले से शिक्षक थे
शिक्षकों का आरोप है कि हालिया नियुक्तियों में नव चयनित शिक्षकों से आर्थिक सहयोग लेकर उन्हें उन स्कूलों में पदस्थ किया गया जहाँ पहले से पर्याप्त शिक्षक मौजूद थे। इसका सीधा असर पुराने शिक्षकों पर पड़ा, जिन्हें अब अतिशेष बताकर दूर-दराज के इलाकों में भेजा जा रहा है। यह निर्णय न केवल अनुचित है, बल्कि शिक्षक समुदाय में असंतोष और अविश्वास को जन्म दे रहा है।
सरकार ने घटा दिया शिक्षकों का सेटअप, स्कूलों का विलय बन गया नई समस्या
शिक्षा विभाग ने स्कूलों का आपस में विलय कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप कई स्कूलों के शिक्षक एक ही स्थान पर एकत्र हो गए और पद कम हो गए। इससे कई शिक्षक स्वाभाविक रूप से अतिशेष हो गए। लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकार ने इस विलय के पहले वैकल्पिक योजनाएं बनाई थीं? क्या इसके प्रभावों का आकलन किया गया था?
महिला शिक्षकों की पीड़ा सबसे अधिक, लेकिन सुनवाई नहीं
महिला शिक्षकों के लिए यह बदलाव और भी कठोर सिद्ध हो रहा है। परिवार, बच्चों, सुरक्षा और कार्यस्थल की दूरी जैसे अनेक कारण हैं जिन पर सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए था। लेकिन युक्तियुक्तकरण की इस प्रक्रिया में महिला शिक्षकों को कोई राहत नहीं दी गई। वे अब दोहरी जिम्मेदारियों के बोझ तले बुरी तरह पिस रही हैं।
यदि शिक्षक ही अस्थिर होंगे, तो शिक्षा की गुणवत्ता कैसे स्थिर रहेगी?
शिक्षा की बुनियाद शिक्षक होता है। यदि वही अस्थिर, तनावग्रस्त और असहाय हो जाए तो निश्चय ही उसका प्रभाव छात्रों की शिक्षा, स्कूल की व्यवस्था और समाज की बुनियादी संरचना पर पड़ेगा। आज जरूरत इस बात की है कि शिक्षा व्यवस्था को संवेदनशीलता के साथ दोबारा से परखा जाए और शिक्षक को केवल “मानव संसाधन” न मानकर एक भावनात्मक, सामाजिक इकाई के रूप में देखा जाए।
शिक्षकों की माँग
1. 2008 के सेटअप की बहाली: स्कूलों की पुरानी संरचना को पुनः लागू किया जाए ताकि पदों की संख्या पूर्ववत हो सके।
2. पारदर्शिता: वरिष्ठता सूची, रिक्त पद और काउंसलिंग की प्रक्रिया को सार्वजनिक किया जाए।
3. महिला शिक्षकों के लिए विशेष नीति: स्थानांतरण और पदस्थापन में महिला शिक्षकों को प्राथमिकता और सुविधा दी जाए।
4. फील्ड स्तर पर पुनर्विचार: ऐसे शिक्षक जो विशेष परिस्थितियों से जूझ रहे हैं, उन्हें मानवीय दृष्टिकोण से राहत दी जाए।
यह केवल आंदोलन की पुकार नहीं है, बल्कि उस शिक्षक समाज की पीड़ा है, जो खुद को भविष्य के निर्माण में समर्पित कर चुका है। आज यदि शिक्षक रो रहा है, तो समझ लीजिए शिक्षा रो रही है — और शिक्षा रोएगी, तो आने वाला भविष्य भी रोएगा।
