18 अगस्त 1934 में ब्रिटीश इंडिया के पंजाब में स्थित दीना झेलम में पैदा हुए गुलज़ार का मूल नाम संपूरण सिंह कालरा है. गौरतलब है कि गुलज़ार के पसंदीदा लेखक रविंद्र नाथ टैगोर रहे हैं. गुलज़ार को दादा साहिब फाल्के अवॉर्ड, ग्रैमी अवॉर्ड, हॉलीवुड के ऑस्कर अवॉर्ड, कई बार फ़िल्म फेयर अवॉर्ड, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, इंदिरा गांधी अवॉर्ड और पद्म भूषण से नवाज़ा जा चुका है.
इंसानी जज़्बातों को खूबसूरत अल्फ़ाज़ों का जामा पहनाना हो, तो गुलज़ार की रचनाएं उसमें सबसे ऊपर खड़ी नज़र आती हैं. गुलज़ार वो कलमकार हैं, जिनकी कविता-कहानियों-गीतों और ग़ज़लों ने लाखों-करोड़ों लोगों के दिल को छुआ है.
साहित्य जगत और बॉलीवुड में गुलज़ार की लोकप्रियता की चमक दशकों बाद भी फीकी नहीं पड़ी है, बल्कि लगातार कायम है. प्रस्तुत हैं, गुलज़ार की वे चुनिंदा ग़ज़लें, जिनकी तासीर उनकी बाकी सभी रचनाओं जैसी है, लेकिन ज़रूरी बात ये है कि उनकी ये तीन रचनाएं बाकी रचनाओं की तरह लोकप्रिय नहीं.
1)
हम तो कितनों को मह-जबीं कहते
हम तो कितनों को मह-जबीं कहते
आप हैं इस लिए नहीं कहते
चांद होता न आसमां पे अगर
हम किसे आप सा हसीं कहते
आप के पांव फिर कहां पड़ते
हम ज़मीं को अगर ज़मीं कहते
आप ने औरों से कहा सब कुछ
हम से भी कुछ कभी कहीं कहते
आप के बा’द आप ही कहिए
वक़्त को कैसे हम-नशीं कहते
वो भी वाहिद है मैं भी वाहिद हूं
किस सबब से हम आफ़रीं कहते
2)
पेड़ के पत्तों में हलचल है ख़बर-दार से हैं
पेड़ के पत्तों में हलचल है ख़बर-दार से हैं
शाम से तेज़ हवा चलने के आसार से हैं
नाख़ुदा देख रहा है कि मैं गिर्दाब में हूं
और जो पुल पे खड़े लोग हैं अख़बार से हैं
चढ़ते सैलाब में साहिल ने तो मुंह ढांप लिया
लोग पानी का कफ़न लेने को तय्यार से हैं
कल तवारीख़ में दफ़नाए गए थे जो लोग
उन के साए अभी दरवाज़ों पे बेदार से हैं
वक़्त के तीर तो सीने पे संभाले हम ने
और जो नील पड़े हैं तिरी गुफ़्तार से हैं
रूह से छीले हुए जिस्म जहां बिकते हैं
हम को भी बेच दे हम भी उसी बाज़ार से हैं
जब से वो अहल-ए-सियासत में हुए हैं शामिल
कुछ अदू के हैं तो कुछ मेरे तरफ़-दार से हैं
3)
फूल ने टहनी से उड़ने की कोशिश की
फूल ने टहनी से उड़ने की कोशिश की
इक ताइर का दिल रखने की कोशिश की
कल फिर चांद का ख़ंजर घोंप के सीने में
रात ने मेरी जां लेने की कोशिश की
कोई न कोई रहबर रस्ता काट गया
जब भी अपनी रह चलने की कोशिश की
कितनी लंबी ख़ामोशी से गुज़रा हूं
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है
मैं ने हर करवट सोने की कोशिश की
एक सितारा जल्दी जल्दी डूब गया
मैं ने जब तारे गिनने की कोशिश की
नाम मिरा था और पता अपने घर का
उस ने मुझ को ख़त लिखने की कोशिश की
एक धुएं का मर्ग़ोला सा निकला है
मिट्टी में जब दिल बोने की कोशिश की
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Tags: Bollywood, Book, Hindi Literature, Hindi poetry, Hindi Writer, Lyricist, Lyricist Gulzar
FIRST PUBLISHED : November 27, 2023, 14:22 IST







