Baba Bokh Naag Devta: उत्तराखंड (Uttarakhand) के उत्तरकाशी (Uttarkashi News) में निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग (Silkyara Tunnel) में फंसे 41 मजदूरों की जिंदगी को सुरक्षित बचाने की जद्दोजहद जारी है. मजदूरों को सुरंग में फंसे 16 दिन हो गए और अब उन्हें निकालने के लिए विज्ञान के साथ-साथ भगवान का भी सहारा लिया जा रहा है. यही वजह है कि एक ओर जहां मशीनों से मजदूरों तक पहुंचने की कोशिशें जारी हैं, वहीं दूसरी ओर सुरंग के मुख्यद्वार पर एक मंदिर की स्थापना की गई है और नियमित तौर पर उसमें पूजा-पाठ हो रहा है. 41 मजदूरों को बचाने के अभियान में 20 से अधिक एजेंसियां लगी हुई हैं और मजदूरों तक पहुंचने में अब करीब 8 से 10 मीटर का फासला रह गया है. 12 नवंबर से ही ये 41 मजदूर सुरंग में फंसे हैं और स्थानीय लोग इस उत्तरकाशी सुरंग हादसे को दैवीय प्रकोप मान रहे हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि बाबा बौखनाग (Baba Bokh Naag Devta) की नाराजगी की वजह से ही यह हादसा हुआ है और उन्हें खुश करने से ही ये मजदूर बाहर आएंगे.
आखिर किस वजह से नाराज हैं बाबा बौखनाग?
दरअसल, 16 दिन बाद भी अब तक मजदूरों को निकालने की दिशा में कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी है और स्थानीय लोगों का मानना है कि बाबा बौखनाग के प्रकोप की वजह से यह हादसा हुआ है. स्थानीय लोगों का दावा है कि अगर सुरंग बनाने से पहले टनल के दोनों ओर अगर बाबा बौखनाग के मंदिर की स्थापना की जाती तो यह हादसा नहीं होता. इतना ही नहीं, कुछ स्थानीय लोगों का मानना है कि टनल बनाने के क्रम में बाबा बौखनाग का मंदिर तोड़ा गया था, इसके प्रकोप से ही यह हादसा हुआ. स्थानीय लोगों का कहना है कि सिलक्यारा टनल के मुहाने पर एक मंदिर था, जिसे कंपनी ने निर्णाण कार्य के दौरान तोड़ दिया था. इसी वजह से बाबा बौखनाग नाराज हो गए हैं. उनका कहना है कि जब तक मंदिर का निर्माण नहीं होता, तब बाबा बौखनाग नाराज ही रहेंगे.
बाबा बौखनाग का है प्रकोप?
इसके अलावा, दावा यह भी किया जा रहा है कि उत्तराखंड में किसी भी सुरंग के निर्माण से पहले स्थानीय देवता का एक छोटा मंदिर बनाने की परंपरा रही है, मगर कंपनी ने सुरंग निर्माण के दौरान इसका खयाल नहीं रखा. इतना ही नहीं, सुरंग के पास पहले से मौजूद एक मंदिर तोड़कर भी कंपनी ने गलती की. इन्हीं प्रकोप की वजह से आज सुरंग के भीतर 41 मजदूर फंसे हुए हैं. स्थानीय लोगों के दावों में अब खुद कंपनी के प्रोजेक्ट मैनेजर को यकीन होने लगा है. यही वजह है कि सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों की जिंदगी को सुरक्षित बचाने के उद्देश्य को लेकर नवयुगा कंपनी के प्रोजेक्ट मैनेजर राजेश पंवार बाबा बौखनाग देवता के दरबार भाटिया गांव में पहुंचे, जहां 41 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने और उनकी जिंदगी बचाने की प्रार्थना की गई. कंपनी से जुड़े अधिकारी लगातार असफलता के बाद बाबा बौखनाग देवता का आशीर्वाद लेने पहुंच रहे हैं.
कौन हैं बाबा बौखनाग?
दरअसल, बाबा बौखनाग को पहाड़ों का रक्षक कहा जाता है. उत्तरकाशी के राड़ी टॉप इलाके में बाबा बौखनाग देवता का मंदिर है. बाबा बौखनाग को स्थानीय लोग ईष्ट देवता भी मानते हैं. बाबा बौखनाग देवता को लेकर ग्रामीणों में काफी मान्यता है. ऐसी मान्यता है कि बाबा बौखनाग पहाड़ों के रक्षक हैं और पहाड़ पर रहने वाले लोगों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि बाबा बौखनाग की उत्पत्ति नाग के रूप में हुई है और यहां हर साल मेला लगता है. बता दें कि रेस्क्यू ऑपरेशन में आ रहीं बाधाओं के बाद उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बचाने के लिए तकनीक के साथ आस्था का भी सहारा लिया जा रहा है. यही वजह है कि कंपनी ने सुरंग के बाहर बौखनाग देवता का मंदिर स्थापित किया है, जहां एक रोज पूजा होती है.

कैसे और कब हुआ उत्तरकाशी सुरंग हादसा
उत्तरकाशी में यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर बन रही सिलक्यारा सुरंग का एक हिस्सा 12 नवंबर को ढह गया था, जिसके कारण उसमें काम कर रहे श्रमिक फंस गए थे. उन्हें बाहर निकालने के लिए युद्ध स्तर पर कई एजेंसियों द्वारा बचाव अभियान चलाया जा रहा है. बचाव कार्यों में सहयोग के लिए उत्तराखंड सरकार की ओर से नियुक्त नोडल अधिकारी नीरज खैरवाल ने रविवार शाम सात बजे तक की स्थिति बताते हुए कहा था कि मलबे में ऑगर मशीन का केवल 8.15 मीटर हिस्सा ही निकाला जाना शेष रह गया है. मलबे में हाथ से ड्रिलिंग कर उसमें पाइप डालने के लिए ऑगर मशीन के सभी हिस्सों को पहले बाहर निकाला जाना जरूरी था. सुरंग में करीब 60 मीटर क्षेत्र में फैले मलबे को भेदकर श्रमिकों तक पहुंचने के लिए अब 10-12 मीटर की ड्रिलिंग शेष रह गयी है.
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FIRST PUBLISHED : November 27, 2023, 13:32 IST







